NEELAM GUPTA

Add To collaction

वार्षिक लेखन प्रतियोगिता। शहर का नुकसानदायक पर्यावरण

पर्यावरण और शहर


इनको खुली हवा की जरूरत है ।इस दम घोटू जहरीली हवा मे तो इनकी तबीयत और बिगड़ सकती है ।इन्हे अस्थमा का अटैक पड़ा है।


दिल्ली शहर का पर्यावरण इनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।यहां वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण और जल प्रदूषित बहुत है ।इतना टैरिफ का शोर ,धुआंधार महौल, फैक्ट्री से निकलता धुआँ और कैमिकल मिश्रित जल और आवाजें अच्छे भले आदमी को बीमार करने के काफी है।


यदि यहां इन्हे प्राणायाम भी कराया जाए तो भी, प्रदूषित हवा इनके फेफड़ों को और नुकसानदायक है।इतने ध्वनि प्रदूषण मे ध्यान योग तो हो ही नही सकता है।


इन्हें शहर के पर्यावरण से दूर किसी शांति जगह में लेकर जाओ ।जहां ट्रैफिक की आवाजाही नहीं हो।और शुद्ध जल का प्रबंध करो ।शांति के माहौल में ही इनकी तबीयत में सुधार आ सकता है।


ये शहर का वातावरण, एलर्जी के साथ इनके फेफड़ों को खराब कर रहा है। और उनकी तबीयत दिन पर दिन खराब होती जा रही है।

इन्हे ऐसा माहौल चाहिए जहां पेड़ो की तादाद अधिक हो। ऑक्सीजन की भरपूर मात्रा हो। शहरों में तो पेड़ों को भी खत्म करके कंक्रीट के जंगल खड़े कर दिए गए हैं । चारों तरफ ऊंची ऊंची बिल्डिंग बनके धूप तो जैसे सूरज की खत्म भी हो गई है  जिससे जो हवा में कीटाणु है, वह भी खत्म नहीं हो पाते। उमस बन और घबराहट पैदा करते हैं। आंखों में जलन रहना भी अब तो आम बात रह गई है। शरीर भी थका थका रहता है। चेहरे की रौनक ही चली गई है। शरीर की फुर्ती ,निढ़ालता में बदल गई है। छोटे बड़े सभी पर इसका असर पड़ता है।


जब सही रूप से ऑक्सीजन ही नहीं मिलती लोगों को, तो कैसे स्वस्थ रहें ।शहर का वातावरण दिन पर दिन दूषित होता जा रहा है ।शहरों में इतनी भीड़ हो गई है, कि आदमी से आदमी टकराकर चलता है  जिससे एक दूसरे से इंफेक्शन हो जाता है  जितने लोग उतनी ही शहरों में काम करने के लिए मारामारी रहती है। छोटे-छोटे घरों में बंद रह  कर रह गए हैं लोग। वहां न हवा आती है न धूप।


एसी लगा, लगा कर आर्टिफिशियल हवा लेते हैं।खिड़कियां तो जैसे शहरों के घरों की बंद ही हो गई है। कुछ देर यदि  हवा के लिए  खिड़की दरवाजे खोल दिए जाएं  तो ध्वनि प्रदूषण इतना है। कि आदमी बेचैन हो जाता है सिर में दर्द होने लगता है ।


डॉक्टर ने ही बात समझाते हुए मिस्टर गुप्ता जी को उनकी मिसेज के लिए सलाह दी।


यदि आपको उनका स्वास्थ्य प्यारा है। तो इन्हीं शहर की आबोहवा से जल्द से जल्द शुद्ध वातावरण की और ले जाएं। वहीं इनकी सेहत में बढ़ोतरी हो सकती है।और आगे आपकी इच्छा यह कहकर डॉक्टर साहब चले गए।


अगले ही दिन मिस्टर गुप्ता जी ने मैसेज को लेकर अपने शहर से दूर अपने पुराने गांव की तरफ चले गए।


   8
2 Comments

Seema Priyadarshini sahay

19-Feb-2022 05:08 PM

बहुत ही बढ़िया रचना है मैम

Reply

NEELAM GUPTA

19-Feb-2022 07:20 PM

आपका बहुत-बहुत आभार

Reply